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य उ॒ग्रा अ॒र्कमा॑नृ॒चुरना॑धृष्टास॒ ओज॑सा। म॒रुद्भि॑रग्न॒ आ ग॑हि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ya ugrā arkam ānṛcur anādhṛṣṭāsa ojasā | marudbhir agna ā gahi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। उ॒ग्राः। अ॒र्कम्। आ॒नृ॒चुः। अना॑धृष्टासः। ओज॑सा। म॒रुत्ऽभिः॑। अ॒ग्ने॒। आ। ग॒हि॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:19» मन्त्र:4 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:36» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उक्त पवन किस प्रकार के हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (उग्राः) तीव्र वेग आदि गुणवाले (अनाधृष्टासः) किसी के रोकने में न आ सकें, वे पवन (ओजसा) अपने बल आदि गुणों से संयुक्त हुए (अर्कम्) सूर्य्यादि लोकों को (आनृचुः) गुणों को प्रकाशित करत हैं, इन (मरुद्भिः) पवनों के साथ (अग्ने) यह विद्युत् और प्रसिद्ध अग्नि (आगहि) कार्य्य में सहाय करनेवाला होता है॥४॥
भावार्थभाषाः - जितना बल वर्त्तमान है, उतना वायु और विद्युत् के सकाश से उत्पन्न होता है, ये वायु सब लोकों के धारण करनेवाले हैं, इनके संयोग से बिजुली वा सूर्य्य आदि लोक प्रकाशित होते तथा धारण किये जाते हैं, इससे वायु के गुणों का जानना वा उनसे उपकार ग्रहण करने से अनेक प्रकार के कार्य्य सिद्ध होते हैं॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः कीदृशास्ते मरुत इत्युपदिश्यते।

अन्वय:

य उग्रा अनाधृष्टासो वायव ओजसाऽर्कमानृचुरेतैर्मरुद्भिः सहाग्ने अयमग्निरागह्यागच्छति समन्तात् कार्य्ये सहायकारी भवति॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) वायवः (उग्राः) तीव्रवेगादिगुणाः (अर्कम्) सूर्य्यादिलोकम् (आनृचुः) स्तावयन्ति तद्गुणान् प्रकाशयन्ति। अपस्पृधेथामानृचु० (अष्टा०६.१.३६) अनेनार्चधातोर्लिट्युसि सम्प्रसारणमकारलोपश्च निपातितः। (अनाधृष्टाः) धर्षितुं निवारयितुमनर्हाः (ओजसा) बलादिगुणसमूहेन सह वर्त्तमानाः (मरुद्भिः) एतैर्वायुभिः सह (अग्ने) विद्युत् प्रसिद्धो वा (आ) समन्तात् (गहि) प्राप्नोति॥४॥
भावार्थभाषाः - यावद्बलं वर्त्तते तावद्वायुविद्युद्भ्यां जायते, इमे वायवः सर्वलोकधारकाः सन्ति। तद्योगेन विद्युत्सूर्य्यादयः प्रकाश्य ध्रियन्ते। तस्माद्वायुगुणज्ञानोपकारग्रहणाभ्यां बहूनि कार्य्याणि सिध्यन्तीति॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जितके बल विद्यमान असते तितके वायू व विद्युतच्या साह्याने उत्पन्न होते. हे वायू सर्व गोलांना धारण करणारे आहेत. त्यांच्या संयोगाने विद्युत व सूर्य इत्यादी लोक (गोल) प्रकाशित होतात तसेच धारणही केले जातात. यामुळे वायूचे गुण जाणण्याने व त्यांच्याकडून उपकार ग्रहण करण्याने अनेक प्रकारचे कार्य सिद्ध होते. ॥ ४ ॥